इतिहास की याद – विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस पर पाचोरा में मशाल रैली का आयोजन تاريخ جي ياد – ورهاڱي جي ويھيڪي ڏينھن تي پاچورا ۾ مشعل ريلي جو اهتمام

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पाचोरा – 14 अगस्त भारत के इतिहास का एक अत्यंत पीड़ादायक और हृदय विदारक दिन है। सन 1947 में भारत का विभाजन हुआ और उससे उत्पन्न हुई भयंकर अशांति, दंगे, हिंसा, जनहानि तथा लाखों लोगों के विस्थापन का घाव आज भी ताज़ा है। इस अमानवीय घटना की स्मृति में, नई पीढ़ी को इससे मिलने वाले ऐतिहासिक सबक से अवगत कराने और विस्थापितों के बलिदान को याद रखने के उद्देश्य से हर वर्ष 14 अगस्त को “विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस” के रूप में मनाया जाता है। इस स्मृति दिवस के अवसर पर पाचोरा में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, भारतीय सिंधु सभा, पूज्य सिंधी जनरल पंचायत, सिंधी कॉलोनी पाचोरा के संयुक्त तत्वावधान में भव्य मशाल रैली का आयोजन किया गया। देशभक्ति के जोश में और “वंदे मातरम”,

“भारत माता की जय” जैसे नारों की गूंज में यह रैली संपन्न हुई। रैली की शुरुआत भारतीय सिंधु सभा युवा विंग महाराष्ट्र प्रदेश के महामंत्री राकेश पुर्सनाणी और भारतीय जनता पार्टी व्यापारी मोर्चा के जिला अध्यक्ष रमेश वाणी के हाथों मशाल प्रज्वलित करके की गई। यह मशाल स्वतंत्रता के प्रकाश और विभाजन में शहीद हुए लोगों के बलिदान का प्रतीक बनकर आगे बढ़ी। रैली की शुरुआत सिंधी नवजवान सेवा मंडल, शिव मंदिर से हुई और मार्गक्रमण करते हुए यह साईं

झूलेलाल भगवान मंदिर, सिंधी कॉलोनी पाचोरा पहुंची। वहां भारत माता और सिंधी समाज के कुल देवता भगवान झूलेलाल की प्रतिमा के सामने पूजा-अर्चना और अभिषेक किया गया। इसके बाद रमेश वाणी और श्याम वाजपेयी ने उपस्थित नागरिकों को 14 अगस्त विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस का ऐतिहासिक महत्व समझाया। उन्होंने विभाजन के समय की भयावह परिस्थितियों, उसमें लाखों लोगों की जान जाने, लाखों परिवारों के विस्थापन और सिंधी समाज सहित अन्य विस्थापित समुदायों द्वारा झेली गई कठिनाइयों के बारे में विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने कहा कि इस दिन को याद करने का उद्देश्य केवल अतीत के दुख को स्मरण करना नहीं है, बल्कि एकता, भाईचारे और देश की अखंडता का महत्व नई पीढ़ी तक पहुंचाना है। इस रैली में भारतीय सिंधु सभा अध्यक्ष अनिल चंदनाणी, रैली के कार्याध्यक्ष एड. राजेंद्र डी. वासवाणी, मीडिया प्रभारी जितेश नागराणी की विशेष उपस्थिति रही। साथ ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के श्याम वाजपेयी, विक्की ऐशवाणी, जगदीश पाटिल, दीपक माने, अमोल नाथ, प्रदीप पाटिल, योगेश ठाकुर, उमेश माली ने भी उत्साहपूर्वक भाग लिया। पूज्य सिंधी जनरल पंचायत के मोटूमल नागराणी, गुलाब पंजवाणी, रमेश शामनाणी, सतीश सर शामनाणी, सुनील सर शामनाणी भी सक्रिय रूप से उपस्थित थे। सामाजिक कार्यकर्ता हरी वासवाणी, राजेश चंदनाणी, जयराम ऐशवाणी, वरंद पुर्सनाणी, भारत वाधवाणी, राम शामनाणी, बंटी शामनाणी, आकाश केसवाणी, योगेश वाधवाणी, जय ईसराणी, लक्की रत्नाणी समेत सिंधी समाज के अनेक गणमान्य नागरिक और युवा कार्यकर्ता मौजूद थे। रैली के आयोजन और प्रबंधन की जिम्मेदारी राकेश पुर्सनाणी व एड. राजेंद्र डी. वासवाणी ने बखूबी निभाई। मार्ग में रैली ने देशभक्ति के नारों से वातावरण को गूंजा दिया। नागरिकों ने रैली का स्वागत उत्साह से किया, जबकि कई लोगों ने सड़क के किनारे खड़े होकर देशभक्ति का जयघोष किया। यह मशाल रैली केवल एक दिन का कार्यक्रम न होकर, एक ऐतिहासिक संदेशवाहक साबित हुई। विभाजन से आए सिंधी समाज ने अपने परिश्रम, संस्कृति, व्यापार कौशल और सामाजिक कार्यों से देश की प्रगति में महत्वपूर्ण योगदान दिया है, यह इस रैली से स्पष्ट हुआ। विभाजन की पीड़ा पीढ़ी दर पीढ़ी स्मरण में रहे और भविष्य में ऐसी त्रासदी फिर न हो, इसके लिए नागरिकों को जागरूक करने का उद्देश्य इस कार्यक्रम से सफलतापूर्वक पूरा हुआ। 14 अगस्त का दिन भारतीय इतिहास के पन्नों में भले ही काले अक्षरों में दर्ज हो, लेकिन यह दिन हमें एकता, सामूहिक साहस और दृढ़ निश्चय की शिक्षा भी देता है। पाचोरा की इस मशाल रैली ने न केवल उस दुखद घटना को याद किया, बल्कि यह देश की एकता और सांस्कृतिक सौहार्द का प्रतीक बनकर आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करने वाली भी साबित हुई।

تاريخ جي ياد – ورهاڱي
جي وڀييشڪا سمرتي ڏهاڙي تي پاچورا ۾ مشعل ريلي جو آيوجن
14 – آگسٽ، ڀارت جي تاريخ ۾ هڪ تمام دردناڪ ۽ دل ڏکائيندڙ ڏينهن آهي۔ سن 1947 ۾ ڀارت جو ورهاڱو ٿيو، ۽ ان سان گڏ آيل خوفناڪ افراتفري، دنگا، هنساءُ، جان ۽ مال جو وڏو نقصان ۽ لکين ماڻهن جو بي گهر ٿيڻ جو زخم اڄ به تازو آهي۔ ان امانوي واقعي جي ياد ۾، نئين پيڙهي کي تاريخ جا سبق سمجهائڻ ۽ بي گهر ٿيلن جي قرباني کي ياد رکڻ لاءِ، هر سال 14 آگسٽ کي “ورهاڱي جي وڀييشڪا سمرتي ڏهاڙو” طور ملهائبو آهي۔ پاچورا ۾ هن سمرتي ڏهاڙي جي موقعي تي، راشٽريه سويئم سيوڪ سنگھ، ڀارتيه سنڌو سڀا، پوڄي سنڌي جنرل پنچائت، سنڌي ڪالوني پاچورا جي گڏيل ميزباني هيٺ هڪ ڀव्य مشعل ريلي جو آيوجن ٿيو۔ ديس ڀڪتي جي جوش ۾، “وندي ماترم” ۽ “ڀارت ماتا جي جئي” جا نعرا گونجندا رهيا، ۽ ريلي شان سان نڪتي۔ ريلي جي شروعات ڀارتيه سنڌو سڀا يووا وِنگ مهاراشٽر پرديش جي مهامنتري شري راڪيش پُرسناڻي ۽ ڀاجپا وياپاري مورچا جي ضلع صدر شري رمیش واني جي هٿن مشعل ٻاري ڪري ٿي۔ هي مشعل، آزادي جي روشني ۽ ورهاڱي ۾ شهيد ٿيل ماڻهن جي قرباني جو علامت بڻجي، شهر ۾ اڳتي وڌي۔ ريلي، سنڌي نوجوان سيوه منڊل شِو مندر تان شروع ٿي، سائين جھوليلال ڀڳوان مندر، سنڌي ڪالوني پاچورا تائين پهتي۔ اتي ڀارت ماتا ۽ سنڌي سماج جي ڪل ديوتا ڀڳوان جھوليلال جي مورتي آڏو پوڄا-ارجنا ۽ اڀشيڪ ٿيو۔ پوءِ رمیش واني ۽ شيام واجپئي، موجود ماڻهن کي 14 آگسٽ ورهاڱي جي وڀييشڪا سمرتي ڏهاڙي جو تاريخي پس منظر سمجهرايو۔ ورهاڱي واري وقت جي خوفناڪ حالتن، لکين ماڻهن جي جان وڃڻ، لکين گهر بار ڇڏيندڙ بي گهر ٿيڻ، ۽ خاص طور تي سنڌي سماج سميت ٻين ڪميونٽيز جي تڪليفن بابت وڌيڪ ڄاڻ ڏني۔ هنن اهو به چيو ته، هي ڏينهن ياد ڪرڻ جو مقصد صرف پراڻن ڏکن کي ورجائڻ ناهي، پر ايڪتا، ڀائچاري ۽ ديس جي اَخندتا جي اهميت نئين پيڙهي تائين پهچائڻ آهي۔ هن ريلي ۾ ڀارتيه سنڌو سڀا جي صدر انيل چندناني، ريلي جي ڪارياڌيڪش ايڊ. راجندَر ڊي. واسواڻي، ميڊيا پرڀاري جيتيش ناگراني خاص موجود هئا۔ راشٽريه سويئم سيوڪ سنگھ طرفان شيام واجپئي، وِڪّي ايشواڻي، جگديش پاٽيل، ديپڪ ماني، امول ناتھ، پرديپ پاٽيل، يوگيش ٺاڪر، اوَميش مالي به جوش سان حصو ورتو۔ پوڄي سنڌي جنرل پنچائت طرفان موٽومل ناگراني، گلاب پنجواڻي، رمیش شامناڻي، ستيش سر شامناڻي، سُنيُل سر شامناڻي، سماجي ڪارڪن هري واسواڻي، راجيش چندناني، جيرام ايشواڻي، ورند پُرسناڻي، ڀارت وادهاڻي، رام شامناڻي، بُنٽي شامناڻي، آڪاش کيسواڻي، يوگيش وادهاڻي، جَي ايسراڻي، لڪي رتناڻي سميت سنڌي سماج جا ڪيترائي معزز ۽ نوجوان ڪارڪن موجود هئا۔ ريلي جي آيوجن ۽ پرَبَند جي ذميواري شري راڪيش پُرسناڻي ۽ ايڊ. راجندَر ڊي. واسواڻي خوب نڀائي۔ شهر ۾ ريلي ديس ڀڪتي جي نعرا سان ماحول ۾ جوش ڀري ڇڏيو، ماڻهن ريلي جو ڀرپور استقبال ڪيو، ۽ رستي تي بيٺل ڪيترن ماڻهن ديس ڀڪتي جا نعرا هنيا۔ هي مشعل ريلي صرف هڪ ڏينهن جو پروگرام نه هو، پر هڪ تاريخي پيغام پهچائڻ واري بڻجي۔ ورهاڱي کان پوءِ سنڌي سماج، پنهنجي محنت، ثقافت، واپار جي هنر ۽ سماجي حصي سان ديس جي ترقي ۾ اهم ڪردار ادا ڪري رهيو آهي، اهو پيغام به هن ريلي مان صاف ظاهر ٿيو۔ ورهاڱي جي پيڙا پيڙهيءَ در پيڙهيءَ تائين ياد رهي، ۽ اهڙي تراسدي ٻيهر نه ٿئي، ان لاءِ جاڳرتا پيدا ڪرڻ ۾ هي آيوجن ڪامياب ٿيو۔ 14 آگسٽ ڀلي ڀارت جي تاريخ ۾ ڪارا اکرن سان لکيل هجي، پر هي ڏينهن سيکاري ٿو ته ايڪتا، گڏيل بهادري ۽ مضبوط ارادي سان هر مشڪل کي مات ڏئي سگهجي ٿي۔ پاچورا جي مشعل ريلي نه صرف انهيءَ ڏکدائِي واقعي کي ياد ڪيو، پر ديس جي ايڪتا ۽ ثقافتي سَوهَرد جو علامت بڻجي، ايندڙ پيڙهين لاءِ الهام ڏيندڙ به ثابت ٿي۔

इतिहासाची आठवण – फाळणीचा दिवस : कधीही न विसरणारा जखमेचा वेदनादायक ठसा      —–                                            पाचोरा – १४ ऑगस्ट १९४७ — ही तारीख भारतीय इतिहासाच्या पानांवर केवळ स्वातंत्र्याच्या पूर्वसंध्येची नाही, तर भारतीय जनतेच्या हृदयात कायमचा ठसलेला असा दु:खाचा, रुदनाचा आणि रक्ताचा दिवस आहे. ही ती रात्र होती ज्या रात्री इंग्रजांनी सत्ता हस्तांतराच्या नावाखाली भारताची छाती फाडली. शतकानुशतके एकत्र राहणाऱ्या भावांमध्ये धर्माच्या नावाने, राजकीय खुर्च्यांच्या हव्यासाने, आणि परकीय षडयंत्रांनी जखमा खोल केल्या. अंग्रेजांच्या २०० वर्षांच्या अत्याचारानंतर भारत स्वतंत्र होत होता, पण त्या स्वातंत्र्याच्या साखळ्यांसोबत रक्ताने भिजलेली एक रेषाही आपल्या नकाशावर कोरली गेली — भारत आणि पाकिस्तान अशी दोन राष्ट्रं उभी करण्यात आली. पण त्या रेषेने फक्त जमीनच नाही, तर मनं, माती, नाती, संस्कृती आणि भविष्य सुद्धा तोडलं. एका रात्रीत लाखो लोक परके झाले, आपली घरं, शिवारं, बाजारपेठा, मंदिरे, गुरुद्वारे, समाधी — सर्व काही मागे सोडून जीव वाचवण्यासाठी त्यांनी पळ काढला. सिंध — ज्याची ओळख सहिष्णुता, व्यापारकौशल्य, सांस्कृतिक समृद्धी आणि झूलेलाल यांच्या कृपेने सजलेल्या श्रद्धेने होती — त्या भूमीतील हिंदू बांधवांना सर्व काही गमवून भारतात पळावे लागले. जन्मभूमी मागे राहिली, बालपणाच्या गल्ल्या, आईवडिलांचे घर, पिढ्यानपिढ्या चालत आलेला व्यवसाय — सगळं क्षणात गमावलं. जे वाचले त्यांनी केवळ अंगावरचे कपडे आणि आठवणींचा ओझा घेऊन अनोळखी देशाच्या नव्या कोपऱ्यात पाय ठेवला. रस्त्यात दरोडे, हत्याकांडे, स्त्रियांचा अवमान, मुलांच्या डोळ्यासमोर होणारे हत्याकांड — या सर्वांचा सामना त्यांनी केला. पंजाबातही तीच कथा. सिख आणि पंजाबी हिंदू बांधवांना आपली संपन्न शेती, गुरुद्वारे, हक्काची घरं सोडून भारतात पळावं लागलं. पाकिस्तानच्या भागातील लाहोर, रावलपिंडी, मुलतान या शहरांतले हजारो सिख-पंजाबी एका रात्रीत बेघर झाले. त्यांनी सीमारेषा ओलांडताना प्रचंड हिंसा पाहिली — रेल्वेगाड्यांमधून प्रेतं आणली जात होती, रस्त्यांवर रक्ताचे डोह झाले होते. फाळणीचा घाव केवळ सिंधी आणि पंजाबी सिखांवरच नव्हता. बंगालच्या पूर्व भागात हिंदू-मुस्लिम दोघांच्याही जीवनात उलथापालथ झाली. उत्तर-पश्चिमी सीमावर्ती प्रांत, बलुचिस्तान या भागात राहणारे अनेक हिंदू, शीख, तसेच काही मुस्लिम कुटुंबंही विस्थापित झाली. आपापल्या धर्माच्या लोकांसोबत सुरक्षित स्थळी जाण्यासाठी त्यांनी जिवाची बाजी लावली. एकूण १.५ कोटी लोकांना आपल्या जन्मगावातून हुसकावून लावले गेले. अंदाजे १० ते १५ लाख लोकांचा जीव गेला. या आकड्यांच्या मागे असंख्य विधवा, पोरके झालेले बालक, उद्ध्वस्त झालेले कुटुंब आणि आयुष्यभर न भरून येणाऱ्या जखमा दडलेल्या होत्या. तरीही, हे विस्थापित लोक भारतात आल्यावर हातावर हात ठेवून बसले नाहीत. त्यांनी नव्या भूमीत परिश्रमाने आपलं आयुष्य पुन्हा उभं केलं. सिंधी समाजाने आपली व्यापारी वृत्ती, कष्टाळूपणा आणि संस्कृतीची ओळख जपून भारतातील अनेक राज्यांमध्ये व्यवसाय उभारला. शिक्षण, व्यापार, समाजसेवा, उद्योग अशा प्रत्येक क्षेत्रात त्यांनी भारताला आपलं सर्वोत्तम दिलं. हातात भांडवल नव्हतं, पण मनात आत्मविश्वास आणि पिढ्यानपिढ्या जोपासलेलं अनुभवसंपन्न ज्ञान होतं. सिख आणि पंजाबी बांधवांनी भारताच्या शेतीला नवी ताकद दिली. हरितक्रांतीच्या वेळी पंजाब आणि हरियाण्यातील शेतकऱ्यांनी देशाचं अन्नधान्य उत्पादन वाढवून अन्नसुरक्षेचं कवच दिलं. उद्योग, सेना, क्रीडा, संगीत या क्षेत्रांतही त्यांनी देशाचं नाव उज्वल केलं. फाळणीने जगाला दाखवून दिलं की धर्माच्या नावाने रेषा आखणं म्हणजे रक्तपाताचं दार उघडणं. त्या वेळी धार्मिक उन्माद, राजकीय सत्तेची लालसा आणि परकीय शक्तींचं षडयंत्र यांनी एकत्र येऊन किती अमानुष परिणाम घडवून आणू शकतात, हे इतिहासाने सिद्ध केलं. त्यामुळे आजही समाजात नफरतची बी पेरणाऱ्या प्रवृत्तींना ओळखणं आणि थांबवणं ही आपली जबाबदारी आहे. १४ ऑगस्टचा “विभाजन विभीषिका स्मृती दिवस” हा केवळ स्मरणाचा नाही, तर चेतनेचा दिवस आहे. हा दिवस आपल्याला सांगतो — “भूतकाळ विसरू नका, अन्यथा इतिहास पुन्हा स्वतःची पुनरावृत्ती करेल.” त्या दिवशी झालेल्या बलिदानांचा सन्मान करणे, पुढच्या पिढ्यांना एकतेचं, सहिष्णुतेचं आणि सामूहिक साहसाचं मूल्य समजावून सांगणे, हे या दिवसाचं उद्दिष्ट आहे. फाळणीच्या जखमा आजही अनेक कुटुंबांच्या आठवणीत ताज्या आहेत. पण त्या जखमांनी एक शिकवण दिली — परिस्थिती कितीही प्रतिकूल असो, धैर्य, परिश्रम आणि एकतेने उभं राहता येतं. सिंधी, पंजाबी, बंगाली आणि इतर विस्थापित समाजांनी याच धैर्याने भारताच्या उभारणीत आपलं स्थान निर्माण केलं. १४ ऑगस्ट हा दिवस भारताच्या इतिहासातील काळा अध्याय आहे, पण त्यातूनच प्रकाशाची किरणंही फुटतात. त्या वेदनांच्या स्मरणातून आपण एकतेचा, बंधुत्वाचा आणि धर्मनिरपेक्षतेचा मार्ग स्वीकारू या. कोणत्याही परिस्थितीत नफरतची राजकारणं उभी राहू नयेत, यासाठी सजग राहणं हीच खरी श्रद्धांजली ठरेल. आज, या स्मृतीदिनी आपण सर्वांनी मनापासून शपथ घ्यायला हवी — “आपल्या देशाच्या एकतेला, स्वातंत्र्याला आणि अखंडतेला कुणाच्याही हातून धक्का लागू देणार नाही, आणि कधीही फाळणीसारखा शाप पुन्हा या भूमीवर येऊ देणार नाही.”

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